आज किसी भी महापुरुषों की जयंती धूमधाम से मनाते देखता हूँ तो यकीन मानिये मुझे अंदर से एक बात हमेशा कचोटती है की ये जो कार्यकर्त्ता है जो काफी जोश में होते है ऐसी जयंती समारोहों को मनाते वक़्त वे वाकई में उन महापुरुषों के बारे में कुछ जानते भी है कुछ पढ़ा भी है या यूं ही पकी पकाई बातों को सुनकर हमेशा जोश में भरे रहते है।
आज मैं जयंती नामक मूवी के बारे में बात कर रहा हूँ जो इस वस्तु स्थिति को भली भांति दर्शाता भी और आपके अंदर के इंसान को यह समझने को मजबूर करता है की तरक्की सिर्फ जयंती पर फूल माला या मिठाई बांटने या उनके फोटो के आगे मिठाई चढ़ाने से नहीं होती है उन्हें पढ़ने से होती है। अगर आप सामाजिक रूप से एक समाज को समृद्ध देखना चाहते है तो ऐसे कार्यकर्ताओं को समझने के लिए यह मूवी सार्थक साबित हो सकती है की आप उनके गुस्से को गलत रास्ते से निकालकर सही रास्ते में कैसे ला सकते है और किसी समाज को ऊपर उठाने के लिए किस तरीके के प्रयास किये जाने चाहिए।
मैंने कुछ दिनों पहले एक पोस्ट लिखा था की हमें युवाओं के ऊर्जा को कैसे सकारात्मक रूप से उपयोग करने के बार में बात करना चाहिए यह मूवी वास्तव में यही कार्य करती है। सिर्फ हम ही इस बात से दुःखी नहीं की हमारे युवाओं की ऊर्जा गलत तरीके से गलत लोग इस्तेमाल करते है उसका सही समय पर पर सही दिशा में कैसे उपयोग हो यह समझना बहुत जरुरी है। इस मूवी को आप उसी कड़ी में एक पत्थर समझ सकते है। और मैं उन सभी से इस मूवी को देखने का आग्रह करूंगा क्योंकि सिर्फ असवर्णो के युवा ही इस भटकाव में नहीं जी रहे है वे सभी जी रहे है जो आज बेरोजगार है और वे ऐसा क्यों है कैसे है इसके पीछे की क्या वजह है यह सब आप इस मूवी में देख सकते है। वस्तुतः यह मूवी मराठी में बनी है लेकिन आज आप OTT प्लेटफॉर्म पर हिंदी या अंग्रेजी में भी देख पाएंगे।
मूवी में निर्देशक की पकड़ लाजवाब दिखाई पड़ती है और पूरी मूवी एक लय में दिखाई भी पड़ती है कही कही पर मूवी थोड़ी से हल्की दिखाई पड़ती है लेकिन निर्देशक ने अपनी पकड़ ढीली नहीं की अगले ही क्षण मूवी फर्राटे से दौड़ती हुयी नजर आती है। इस मूवी को मैं पुरुष प्रधान समाज का आईना ही कहूंगा लेकिन एक ऐसा समय आता है जब नायिका अपने छोटे से वक्तव्य से सबकुछ बदल तो नहीं देती है, आम हिंदी सिनेमा की तरह, लेकिन उसके उस डायलॉग से नायक का किरदार एक नये रूप में समाज में जीने के बारे में सोचने को मजबूर जरूर होता है, नायक ने अपने हिस्से का किरदार बखूबी निभाया है ऐसा लगता है वह इस किरदार के लिए पैदा हुआ हो। मूवी का नाम अपने आपको सार्थक साबित करता है इससे दोनों तरह के दर्शक सिनेमा घर में आये होंगे जो इनकी खिलाफत करते होंगे वे तो आये ही होंगे जो चाहने वाले होंगे वे भी आये होंगे।
मुझे लगता है यह मूवी इस तरीके की सर्वश्रेष्ठ मूवी में से एक हो सकती है। क्योंकि कोई भी व्यक्ति इस तरीके के विषयों पर मूवी बनाना नहीं चाहेगा खासकर बॉलीवुड से तो आप कतई इस तरह की उम्मीद नहीं कर सकते है वे सिर्फ एक ही तरीके की मूवी बना सकते है जो सिर्फ नाम के सुपर हिट हो सकते है जो समाज में ऐसा कोई सन्देश नहीं दे पाते है की वे समाज का पुर्णतः चित्रण करता हो या इस देश के गुणगान करता हो। मेरे इस वक्तव्य से कई लोग इत्तफ़ाक़ नहीं रखेंगे लेकिन उनकी चिंता करना मेरा काम नहीं है वे सिर्फ अपनी कहानी कहने का दम रखते है समाज के कटु सन्देश के बारे में वे बात नहीं करते है उन्हें जहाँ लगता है उनकी जमीन ख़िसक सकती है वे उन मुद्दों से दूर ही रहना पसंद करते है भले वे दशकों से राजनैतिक पार्टियों के पीछे घूम रहे हो, खैर ये उनकी बात है आते है मूवी पर। इस मूवी में आप यह देख पाएंगे की सिस्टम तो भ्रष्ट है ही साथ में आज के युवाओ को अपने भ्रष्टाचार में उन्हें कैसे सम्मिलित किया जा सकता है वे अच्छी तरह से समझ चुके है। हमारा पूरा युवा कैसे कुछ लोगों के हाथों की कठपुतली मात्र है जिसमें एक गरीब और ईमानदार तथा शिक्षित युवा भी इस कीचड़ से निकल नहीं पाता है तो अशिक्षितों की बात ही अलग है। लेकिन आखिर में जब वह वही युवा एक बार अपने हक़ के बारे में जान जाता है और उसके बारे में पढ़ना शुरू करता है और लोगो को जागरूक करता है तो उसे कोई भी नहीं रोक पाता है। बस उस युवा के अंदर के जमीर को जगाने की जरूरत है।
लेकिन अफ़सोस की हमारे समाज के सामाजिक कर्ता इस और से मुँह मोड़ बैठे है क्योंकि उन्हें भी अपने भविष्य की चिंता ज्यादा है। अगर इन ऊर्जावान युवाओं का जमीर जाग गया तो फिर उनके पीछे पीछे कौन चलेगा, उनका झंडा कौन उठाएगा। मैं सभी युवाओं से आग्रह करना चाहता हूँ की उठो आज तुम्हारे अंदर शक्ति है जागो और कुछ आगे के भविष्य के बारे में सोचो वरना एक समय ऐसा आएगा जब तुम्हारे पास ना तो संसाधन होंगे ना ही यह ऊर्जा फिर क्या करेंगे आप किसके सहारे जीवन जियेंगे। फिर यही लोग जो आपको कहते रहते है तुम्हारे बिना हम कुछ भी नहीं तो कल उनका काम निकल जाने के बाद आपको दूध में से मक्खी समझकर निकाल फेकेंगे। यही आप मूवी में भी देख सकते है। इस मूवी को IMDb पर ८.2/१० रेटिंग मिली है जो आम सुपर हिट बॉलीवुड मूवी से बढ़िया है।
शिक्षा: बी.ए. (अंग्रेजी), सूचना प्रौद्योगिकी स्नातक, कंप्यूटर एप्लीकेशन में उन्नत स्नातकोत्तर डिप्लोमा, डिजिटल मार्केटिंग में मास्टर, डिजिटल मार्केटिंग में सर्टिफिकेट, कैथी, प्राकृत, ब्राह्मी और संस्कृत में सर्टिफिकेट
लेखन विधा: हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत और कैथी में कविता, लेख, कहानी, आलोचना, पुस्तक समीक्षा आदि प्रकाशित
प्रकाशित कृतियां: व्यक्तिगत कविता संग्रह “रजनीगंधा” के साथ-साथ कई भारतीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में 200 से अधिक रचनाएँ प्रकाशित।
सम्मान और पुरस्कार: राष्ट्रीय हिंदी सेवा सम्मान, श्री मंगरेश डबराल सम्मान, श्री उदय प्रकाश सम्मान, मुंशी प्रेमचंद स्मृति सम्मान, एसएसआईएफ ग्लोबल पीस अवार्ड 2023, मानवाधिकार पुरस्कार 2023, राष्ट्र सेवा पुरस्कार 2024, सामाजिक प्रभाव पुरस्कार 2024 और विभिन्न संगठनों द्वारा 20 से अधिक पुरस्कार और सम्मान से सम्मानित।