हां भइया, जीवन है ये!

“हां भइया, जीवन है ये!”शीर्षक: हां भइया, जीवन है ये! हां भइया, जीवन है ये —ना कोई मेले की चकाचौंध, ना छप्पन भोग,बस आधी रोटी, और फटी धोती का संजोग।टूटे खपरैल में सपने टपकते हैं,मां की सूखी छाती पर बच्चे सिसकते हैं। चौधरी की चौखट झुके-झुके नशा हो गई,बापू की...

कुंवर नारायण – साहित्य और दर्शन

“कुंवर नारायण के विचार: साहित्य और दर्शन की नज़र से” कुंवर नारायण (1927-2017) हिंदी साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षर थे। उनके साहित्य में गहन मानवतावादी दृष्टिकोण, दार्शनिकता और जीवन के प्रति एक व्यापक दृष्टिकोण झलकता है। उनकी काव्य रचनाओं, कहानियों, निबंधों,...

सरस्वती प्रसाद और साहित्य

“सरस्वती प्रसाद के विचार: साहित्य और समाज की नज़र से” साहित्य समाज का दर्पण होता है, और एक लेखक के विचार उसकी रचनाओं में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होते हैं। जब हम हिंदी साहित्य के समृद्ध भंडार की बात करते हैं, तो हमें कई ऐसे महान लेखक मिलते हैं जिन्होंने...

काका हाथरसी और उनके व्यंग्य

“काका-हाथरसी की रचनाओं का समाज और राजनीति पर प्रभाव” काका हाथरसी की रचनाओं का समाज और राजनीति पर प्रभावकाका हाथरसी (1906-1995) हिंदी साहित्य के हास्य और व्यंग्य विधा के एक प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं। अपने अनोखे और मर्मस्पर्शी लेखन के जरिए उन्होंने समाज और...

सीताकांत महापात्रा: कवि और आलोचक

“सीताकांत महापात्रा: एक कवि और साहित्यिक आलोचक” भारत के साहित्यिक परिदृश्य में कई ऐसे कवि और लेखक हुए हैं जिन्होंने अपनी रचनाओं से समाज को न केवल प्रेरित किया बल्कि साहित्य में नए प्रतिमान भी स्थापित किए। ऐसे ही महान साहित्यकारों में से एक हैं सीताकांत...

हिंदी पखवाड़ा

हिंदी पखवाड़ा सरकारी तौर पर १५ दिन का कार्यक्रम होता है जो लगभग हर सरकारी संस्थानों में मनाया जाता है। इसमें हर संस्थान अपने-अपने यहाँ हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए साल भर के कामों का लेखा-जोखा रखता है या यूँ कहे कि वे यह कहते है कि हमने इतना काम हिंदी में किया जैसे कि...