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4 मार्च 1921 में बिहार के अररिया जिले में फारबिसगंज के पास औराही हिंगना गांव में जन्मे श्री फणीश्वर नाथ रेणु जी मैला आँचल, परती परिकथा,  दीर्घतपा,  कितने चौराहे, कलंक मुक्ति,  ठुमरी,  अग्निखोर समेत अनेक साहित्यिक ग्रंथों की रचना करने वाले रेणु जी को ‘मैला-आंचल’ उपन्यास से काफी मान-सम्मान मिला और 1970 में पद्मश्री मिला। 

1974 के दौरान खाद की कालाबाजारी को लेकर पूर्णिया में प्रदर्शन हुआ था। प्रदर्शन में रेणु जी के साथ अन्य लोग भी शामिल थे। इसी क्रम में रेणु जी को पूर्णिया जेल में बंद किया गया था। उसी जेल में नछत्तर माली भी बंद थे। यह गजब संयोग है जब लेखक और पात्र एक ही जेल में बंद थे। कहा जाता है की नछतर माली चम्बल के डाकुओं के बीच मैला आँचल के चरित्र रूप में काफी प्रसिद्ध थे। 

रेणु जी के लेखन के चरित्र में कोई नैना जोगिन हो या कोई लाल पान की बेगम, कोई निखट्टू कामगार और गजब का कलाकार सिरचन हो या चिट्ठी घर-घर पहुंचाने वाला संवदिया हरगोबिंद या फिर ‘इस्स’ कहकर सकुचाता हीरामन और अपनी नाच से बिजली गिराती हीराबाई, सबके बारे में यह बात कही जा सकती है कोसी क्षेत्र का विकासशील गांव जो मैला आंचल में रूढ़ियों और पुराने जमाने में जीता एक ऐसा पिछड़ा समाज भी है जो सिर्फ रेणु की कहानी में ही मिल सकती है। 

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रेणु का समय प्रेमचंद के ठीक बाद का था। तब तक एक तरह से अभिजात वर्ग का साहित्य पर कब्ज़ा था स्वतंत्रता के बाद अगर रेणु जी चाहते तो लीक पर चलकर शहरी और मध्यमवर्गीय जीवन की कहानियां लिखते लेकिन रेणु जी ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने अपने भीतर की उस आवाज को चुना, जो आजादी के बाद दम तोडती गांवों की कराह सुनी और अपने लिए एक अलग रास्ता चुना। मैला आँचल की प्रसिद्धी से एकाएक उनका उभरना मठों में बैठे लेखकों के लिए परेशानी पैदा करने वाली थी और वही हुआ जिसकी वजह से कई तरह के आलोचनात्मक विचार साहित्यिक जगत में आई, लेकिन रेणु जी कहाँ इनकी परवाह करने वाले थे। आलोचनाओं की आंधी जितनी तेजी से आई थी उतनी तेजी से भी गायब हो गयी उनकी लेखनी में चमक पहले से कही ज्यादा होकर उभरी और इसका जीता जागता उदहारण ‘परती परिकथा’ लिखकर ऐसे किसी भी आलोचनाओं का सिरे से ख़ारिज कर दिया।

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आज रेणु जी नहीं है लेकिन उनके नहीं होने के बाद भी जब हम उनकी रचनाओं को देखते हैं तो गांवो के मनोविज्ञान पर उनकी पकड़, गांवों को समझने से लेकर उनके देखने की प्रतिभा को आज भी समझना नामुमकीन सा लगता है आज हमें रेणु जी को की कमी साफ़ दिखती है क्योंकि गाँव पर इस बारीकी से लिखना बहुत ही मुश्किल सी बात लगती है हमें रेणु जी पर गर्व है और हमें एहसास है की हम भी उसी मिटटी के हिस्से के एक कण का छोटा सा हिस्सा है।   

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उनके जन्म दिवस की हार्दिक शुभकामनाये!

धन्यवाद!

शशि धर कुमार