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यह मेरे लेख का शीर्षक नही, यह एक किताब का नाम है जो 2013 केदारनाथ में हुई घटना को लेकर हृदयेश जोशी जी की है। हृदयेश जोशी जी लगातार पर्यावरण से संबंधित विषयों पर हमेशा सक्रिय होकर लिखते और बोलते रहते है। यह किताब उनके एक चैनल के साथ रहने के दौरान पत्रकारिता करते हुए इस घटना के साथ साथ और कई घटनाओं पर उन्होंने प्रकाश डालता है।

यह किताब आप जब पढ़ना शुरू करते है तो आपको गुस्सा आता है आप किस दुनिया में जी रहे है। इसको पढ़ने के बाद अंदाज़ा लग पाता है आप पर्यावरण के प्रति खासकर जो पहाड़ों से संबंधित है आप कुछ भी नही जानते है। अगर आप बहुत सी किताबें पढ़ ले तो भी क्योंकि जितना इन पहाड़ों में बसे लोग इन पहाड़ों को और इसकी पहचान तथा इसके बनावट को पहचान पाते है उतना शायद ही कोई पहचान पायेगा। इसीलिए हृदयेश जोशी जी की यह किताब पढ़नी आवश्यक हो जाती है क्योंकि वे खुद पहाड़ से आते है और मैं उनकी पर्यावरण के प्रति कई रिपोर्टों का कायल रहा हूँ। इस किताब में ऐसा क्या है जो हम जैसों को पढ़ना चाहिए। इस किताब में हर वह बात है जो एक घटना को पुनर्जीवित करती है शब्दों के माध्यम से और इस किताब से आप समझ सकते है कि गलती कहाँ और कितनी हुई है और कितनी हो रही है साथ में सरकार की योजना और उसके बारे में विशेषज्ञों की राय और सरकारी नीतियों के बारे में भी। उस नीतियों के बारे में भी जो वे लोग आमतौर पर बराबर गलती करते हुए आ रहे है। यह किताब पर्यावरण के प्रति जागरूक व्यक्ति के लिए अहम पड़ाव हो सकती है खासकर पहाड़ों की स्थिति जानने के लिए।

केदारनाथ की घटना के बाद सबसे बड़ी घटना 2021 में चमोली में हुई घटना थी जिसने ऋषिगंगा को पूरी तरह बर्बाद कर दिया और एक हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट का भी पूरी तरह सफाया कर दिया और धौलीगंगा में एनटीपीसी के प्रोजेक्ट पर भी असर पड़ा। इस बाढ़ में आये पत्थर और गाद ने लगभग 200 लोगो के जान ले ली। अभी जब मैं यह लिख रहा हूँ तो लगभग भारत के हर हिस्से में बारिश की तबाही दिख रही है हर नदी पिछले कई दशकों के रिकॉर्ड तोड़ रही है और नदियों के अपने बहाव क्षेत्र में लोगों ने इस तरह अतिक्रमण किया हुआ है की हर बड़े शहरों के नदी किनारे पर यही हाल है जिसकी वजह से इस साल लगता है नदी अपने पुराने रास्तों में बहना चाहती है यही वजह है कि कई बड़े शहरों में लोगो को स्थिति बहुत ज्यादा खराब है। यह सिर्फ इसीलिए नही हो रहा है क्योंकि पहाड़ों पर भारी बारिश हो रही है बल्कि प्रकृति जलवायु में सबसे बड़े परिवर्तन की ओर ईशारा कर रही है। और शायद हम समझने को नाकाम हो रहे है। अभी हृदयेश जोशी जी की बांग्लादेश में जलवायु परिवर्तन से हुए विस्थापितों को लेकर एक रिपोर्ट आयी थी जिसको देखने के बाद आप प्रकृति में हुए बदलावों से परिचित हो पाएंगे। उस वीडियो को आप यहाँ https://youtu.be/fP-nwyGrn6M देख पाएंगे। दिल्ली में यमुना का पिछले तीन दशक बाद इस तरह के बाढ़ का दर्शन होना भी पहले से ही सुनिश्चित था इसपर भी आप हृदयेश जोशी जी की वीडियो देख https://youtu.be/TvANdIyrOns सकते है। दिल्ली में आये यमुना के बाढ़ पर मेरा लेख यहाँ यमुना बाढ़ दिल्ली २०२३ पढ़ सकते है। 

मैंने भी कई वर्ष दिल्ली में गुजारे है इसी वजह से दिल्ली से एक लगाव सा हो गया और यही वजह है की मैंने यमुना के बाढ़ पर एक कविता लिख डाली।

समस्या सिर्फ सरकारें पैदा नही कर रही है जितना सरकारें जिम्मेदार है उससे कही ज्यादा हम जिम्मेदार है इस तरह के प्राकृतिक आपदाओं के लिए। हम प्रकृति में हो रहे बदलावों को स्वीकार नही कर पा रहे है और ना ही उसके बारे में गंभीर है।

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इस किताब के माध्यम से आप पहाड़ो की पारिस्थितिकी को जान पाएंगे कि विकास के नाम पर जो पहाड़ो में लगातार विस्फोट और पहाड़ों को काटा जा रहा है इसके बारे में पर्यावरणविदों ने हर तरह से सरकारों को आगाह करने का प्रयास किया है लेकिन सरकार जैसे अपने अलग धुन में चली जा रही है और ऐसा अंग्रेजों के जमाने से ही चला आ रहा है कि वे ना तो पर्यावरणविदों की सुनते है और ना ही स्थानीय निवासियों की सुनते है जो अपने जंगलों पहाड़ों को बचाने के लिये कभी कुली बेगार आंदोलन तो कभी तिलाड़ी विद्रोह तो कभी सल्ट और सालम की क्रांति तो कभी हिमालय बचाओ आंदोलन तो कभी चिपको आंदोलन तो कभी झपटों छीनों आंदोलन तो कभी टिहरी बाँध के खिलाफ तो कभी केदार घाटी बचाओ आंदोलन के नाम पर आम जनजीवन इसके खिलाफ खड़ी भी होती है और कभी कभी सरकारों को इनके आगे झुकना पड़ा है। लेकिन हम जैसे मैदानी इलाकों के लोगो के लिए पहाड़ सिर्फ खूबसूरती का नज़ारा देखने भर के लिए होता है हमें इन आंदोलनों से कोई मतलब नही होता है लेकिन शायद हम भूल जाते है की पूरे भारत का पर्यावरण संतुलन हिमालय पर टिका हुआ है। हम मैदानी इलाके वाले यह तक समझने में नाकाम है कि हमारे मैदानी इलाकों में बहने वाली ज्यादातर नदियां इन्हीं हिमालयी क्षेत्रो से निकलती है। इसके बावजूद हम इन नदियों की ना तो रक्षा कर पा रहे है और ना ही इन संतुलन बनाये रखने का कोई प्रयास

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मैं विकास का विरोधी नही लेकिन पहाड़ों के अस्तित्व को खतरे में डालकर तो कतई नही। और कुछ महीने पहले ही जोशीमठ में जो लगातार पहाड़ दरकने की घटना हुई और अब भी हो रही है शायद सरकार इससे भी सबक नही ले पा रही है कि पहाड़ का विकास पहाड़ों के अस्तित्व को ध्यान में रखकर ही किया जा सकता है। जोशीमठ पर लिखे मेरे लेख को आप यहाँ जोशीमठ – त्राशदी या मानवीय भूल पढ़ सकते है। लेखक या रिपोर्टर के तौर पर हृदयेश जोशी जी की तारीफ कर सकता हूँ और इस किताब के माध्यम से पहाड़ियों की लड़ाई को उन्होंने जल, जंगल और जमीन की लड़ाई बताई है तो इसी जल, जंगल और जमीन की लड़ाई तो आदिवासी भी लड़ रहे है तो उन्हें क्यों नक्सली कहा जा रहा है, क्या इसीलिए की पहाड़ियों की लड़ाई हिंसक नही रही और नक्सलियों की लड़ाई हिंसक रही है। यह मेरा सिर्फ एक सवाल है और मुझे जानने की इच्छा है। हो सकता है मैं गलत हूँ शायद पूरे परिदृश्य को सही से नही समझ पाया हूँ।

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लेकिन इस किताब के बारे में अवश्य कह सकता हूँ कि पढ़ने लायक है और आप पहाड़ों में घूमने के शौकीन है तो आपको यह किताब अवश्य पढ़नी चाहिए क्योंकि यह किताब आपको पहाड़ों के प्रति जिम्मेदार महसूस कराती है। 

जिम्मेदार बनिये और सशक्त बनिये।
धन्यवाद।
✍️©️ शशि धर कुमार