Customize Consent Preferences

We use cookies to help you navigate efficiently and perform certain functions. You will find detailed information about all cookies under each consent category below.

The cookies that are categorized as "Necessary" are stored on your browser as they are essential for enabling the basic functionalities of the site. ... 

Always Active

Necessary cookies are required to enable the basic features of this site, such as providing secure log-in or adjusting your consent preferences. These cookies do not store any personally identifiable data.

No cookies to display.

Functional cookies help perform certain functionalities like sharing the content of the website on social media platforms, collecting feedback, and other third-party features.

No cookies to display.

Analytical cookies are used to understand how visitors interact with the website. These cookies help provide information on metrics such as the number of visitors, bounce rate, traffic source, etc.

No cookies to display.

Performance cookies are used to understand and analyze the key performance indexes of the website which helps in delivering a better user experience for the visitors.

No cookies to display.

Advertisement cookies are used to provide visitors with customized advertisements based on the pages you visited previously and to analyze the effectiveness of the ad campaigns.

No cookies to display.

Spread the love

आज किसी भी महापुरुषों की जयंती धूमधाम से मनाते देखता हूँ तो यकीन मानिये मुझे अंदर से एक बात हमेशा कचोटती है की ये जो कार्यकर्त्ता है जो काफी जोश में होते है ऐसी जयंती समारोहों को मनाते वक़्त वे वाकई में उन महापुरुषों के बारे में कुछ जानते भी है कुछ पढ़ा भी है या यूं ही पकी पकाई बातों को सुनकर हमेशा जोश में भरे रहते है।

आज मैं जयंती नामक मूवी के बारे में बात कर रहा हूँ जो इस वस्तु स्थिति को भली भांति दर्शाता भी और आपके अंदर के इंसान को यह समझने को मजबूर करता है की तरक्की सिर्फ जयंती पर फूल माला या मिठाई बांटने या उनके फोटो के आगे मिठाई चढ़ाने से नहीं होती है उन्हें पढ़ने से होती है। अगर आप सामाजिक रूप से एक समाज को समृद्ध देखना चाहते है तो ऐसे कार्यकर्ताओं को समझने के लिए यह मूवी सार्थक साबित हो सकती है की आप उनके गुस्से को गलत रास्ते से निकालकर सही रास्ते में कैसे ला सकते है और किसी समाज को ऊपर उठाने के लिए किस तरीके के प्रयास किये जाने चाहिए।
 
मैंने कुछ दिनों पहले एक पोस्ट लिखा था की हमें युवाओं के ऊर्जा को कैसे सकारात्मक रूप से उपयोग करने के बार में बात करना चाहिए यह मूवी वास्तव में यही कार्य करती है। सिर्फ हम ही इस बात से दुःखी नहीं की हमारे युवाओं की ऊर्जा गलत तरीके से गलत लोग इस्तेमाल करते है उसका सही समय पर पर सही दिशा में कैसे उपयोग हो यह समझना बहुत जरुरी है। इस मूवी को आप उसी कड़ी में एक पत्थर समझ सकते है। और मैं उन सभी से इस मूवी को देखने का आग्रह करूंगा क्योंकि सिर्फ असवर्णो के युवा ही इस भटकाव में नहीं जी रहे है वे सभी जी रहे है जो आज बेरोजगार है और वे ऐसा क्यों है कैसे है इसके पीछे की क्या वजह है यह सब आप इस मूवी में देख सकते है। वस्तुतः यह मूवी मराठी में बनी है लेकिन आज आप OTT प्लेटफॉर्म पर हिंदी या अंग्रेजी में भी देख पाएंगे।
 
मूवी में निर्देशक की पकड़ लाजवाब दिखाई पड़ती है और पूरी मूवी एक लय में दिखाई भी पड़ती है कही कही पर मूवी थोड़ी से हल्की दिखाई पड़ती है लेकिन निर्देशक ने अपनी पकड़ ढीली नहीं की अगले ही क्षण मूवी फर्राटे से दौड़ती हुयी नजर आती है। इस मूवी को मैं पुरुष प्रधान समाज का आईना ही कहूंगा लेकिन एक ऐसा समय आता है जब नायिका अपने छोटे से वक्तव्य से सबकुछ बदल तो नहीं देती है, आम हिंदी सिनेमा की तरह, लेकिन उसके उस डायलॉग से नायक का किरदार एक नये रूप में समाज में जीने के बारे में सोचने को मजबूर जरूर होता है, नायक ने अपने हिस्से का किरदार बखूबी निभाया है ऐसा लगता है वह इस किरदार के लिए पैदा हुआ हो। मूवी का नाम अपने आपको सार्थक साबित करता है इससे दोनों तरह के दर्शक सिनेमा घर में आये होंगे जो इनकी खिलाफत करते होंगे वे तो आये ही होंगे जो चाहने वाले होंगे वे भी आये होंगे।
 
मुझे लगता है यह मूवी इस तरीके की सर्वश्रेष्ठ मूवी में से एक हो सकती है। क्योंकि कोई भी व्यक्ति इस तरीके के विषयों पर मूवी बनाना नहीं चाहेगा खासकर बॉलीवुड से तो आप कतई इस तरह की उम्मीद नहीं कर सकते है वे सिर्फ एक ही तरीके की मूवी बना सकते है जो सिर्फ नाम के सुपर हिट हो सकते है जो समाज में ऐसा कोई सन्देश नहीं दे पाते है की वे समाज का पुर्णतः चित्रण करता हो या इस देश के गुणगान करता हो। मेरे इस वक्तव्य से कई लोग इत्तफ़ाक़ नहीं रखेंगे लेकिन उनकी चिंता करना मेरा काम नहीं है वे सिर्फ अपनी कहानी कहने का दम रखते है समाज के कटु सन्देश के बारे में वे बात नहीं करते है उन्हें जहाँ लगता है उनकी जमीन ख़िसक सकती है वे उन मुद्दों से दूर ही रहना पसंद करते है भले वे दशकों से राजनैतिक पार्टियों के पीछे घूम रहे हो, खैर ये उनकी बात है आते है मूवी पर। इस मूवी में आप यह देख पाएंगे की सिस्टम तो भ्रष्ट है ही साथ में आज के युवाओ को अपने भ्रष्टाचार में उन्हें कैसे सम्मिलित किया जा सकता है वे अच्छी तरह से समझ चुके है। हमारा पूरा युवा कैसे कुछ लोगों के हाथों की कठपुतली मात्र है जिसमें एक गरीब और ईमानदार तथा शिक्षित युवा भी इस कीचड़ से निकल नहीं पाता है तो अशिक्षितों की बात ही अलग है। लेकिन आखिर में जब वह वही युवा एक बार अपने हक़ के बारे में जान जाता है और उसके बारे में पढ़ना शुरू करता है और लोगो को जागरूक करता है तो उसे कोई भी नहीं रोक पाता है। बस उस युवा के अंदर के जमीर को जगाने की जरूरत है।
 
लेकिन अफ़सोस की हमारे समाज के सामाजिक कर्ता इस और से मुँह मोड़ बैठे है क्योंकि उन्हें भी अपने भविष्य की चिंता ज्यादा है। अगर इन ऊर्जावान युवाओं का जमीर जाग गया तो फिर उनके पीछे पीछे कौन चलेगा, उनका झंडा कौन उठाएगा। मैं सभी युवाओं से आग्रह करना चाहता हूँ की उठो आज तुम्हारे अंदर शक्ति है जागो और कुछ आगे के भविष्य के बारे में सोचो वरना एक समय ऐसा आएगा जब तुम्हारे पास ना तो संसाधन होंगे ना ही यह ऊर्जा फिर क्या करेंगे आप किसके सहारे जीवन जियेंगे। फिर यही लोग जो आपको कहते रहते है तुम्हारे बिना हम कुछ भी नहीं तो कल उनका काम निकल जाने के बाद आपको दूध में से मक्खी समझकर निकाल फेकेंगे। यही आप मूवी में भी देख सकते है। इस मूवी को IMDb पर ८.2/१० रेटिंग मिली है जो आम सुपर हिट बॉलीवुड मूवी से बढ़िया है।
 
धन्यवाद।
शशि धर कुमार
 
✍️सर्वाधिकार सुरक्षित